$type=carousel$sn=0$cols=4$va=0$count=12

तोतली जुबान वाला हर्ष.../ डॉ. शिवम् तिवारी

तोतली जुबान वाला हर्ष :  संस्मरण "तातू, तातू, आ गए मेरे तातू" सर पर बेतरतीब बिखरे बाल, बदन पर पुरानी टी-शर्ट एवं अधफटी...


तोतली जुबान वाला हर्ष : संस्मरण

"तातू, तातू, आ गए मेरे तातू" सर पर बेतरतीब बिखरे बाल, बदन पर पुरानी टी-शर्ट एवं अधफटी नेकर पहने महज 5 बरस का बालक हर्ष मुझे बुलाते हुए बाहर निकला। उस वक्त ढलती शाम की गौधिरिया के अँधेरे में भी उसके चेहरे पर प्रशन्नता एवं कौतूहल को साफ पढ़ा जा सकता था। जब तक मैं उसकी तरफ बढ़कर उसको उठाने के हाथ बढ़ाता, तब तक वह अपने दोनों हाथों से मेरी टांगों को समेटते हुए लिपट चुका था। उसके इस अपनेपन को देखकर मुझसे भी रहा न गया, मैंने अपने सफेद शर्ट, टाई और कोट की परवाह किए बिना उसको अपनी गोद में लेकर गले लगा लिया। उसके गले से लिपटने का एहसास बिना कुछ कहे ही अपनेपन का अहसास कराने के लिए पर्याप्त था। खैर! यह वही हर्ष था, जो मुझे दिलो-जान से प्यारा था।

"तातू, पता है! मेले स्तूल में आज तबसे दादा लंबर मेला आया है" कमरे की तरफ बढ़ते कदम के साथ-साथ तोतली आवाज में हर्ष मुझे अपनी बात सुनाता रहा। कमरे की चाबी बैग से निकालने के लिए मैंने हर्ष को गोद से नीचे उतारा। जब तक कि मैं दरवाजा खोलकर अपना ड्रेस उतारकर हैंगर में टांगता और गमछा लगाता, इतने में वह तपाक से एक पीले रंग का सर्टिफिकेट लेकर मेरे पास आ पहुँचा। "जो तुम्हारे तातू तुम्हे लोज पलाते हैं वो बहुत अत्ते हैं" स्कूल के टीचर की कही बात को हर्ष मुझसे बताने लगा। आज उसका प्रेम कुछ ज्यादा ही उमड़ रहा था क्योंकि मैं 2 दिन अपने गॉव 'अंतू' में बिताने के बाद उससे मिल रहा था। मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और हो भी क्या सकती थी कि जिसको बरस भर पूरे मन से मैंने पढ़ाया हो, वह आज कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया हो।

मेरे कमरे के बाद तीसरे नंबर का कमरा, जिसमें एक संभ्रांत ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले मिश्रा जी, पत्नी और दो बच्चों सहित रहते थे। "मजबूरी का नाम महत्मा गांधी" यह कहावत उन पर पूरी तरह से चरितार्थ होती दिखती थी। साढ़े छः फुट लंबे हट्टे-कट्टे गठीले बदन वाले मिश्रा जी अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे थे, गरीबी का आलम उनपर खूब कहर बरपा रहा था, स्थिति यहाँ तक बिगड़ चली थी कि खुद का पेट पालना भी भारी पड़ रहा था, तिस पर पत्नी और दो बच्चे भी। बच्चों के पास न तो तन ढकने का ढंग से कपड़ा था, न तो स्कूल की फीस, ट्यूसन की तो सोच भी नहीं सकते थे। मिश्रा जी की 7-8 हजार वाली नौकरी छूटे महीनों बीत चुके थे, भगवान ऐसे रूठे थे कि वे जहाँ कहीं भी नौकरी करने जाते, 4-6 दिन से ज्यादा टिक नहीं पाते थे। मकान मालिक भी एक मिश्रा जी ही थे, जिनका मूल निवास नैनी का 'चटकहना' गाँव था, वे बी. पी. सी. एल. से सेवानिवृत्त होकर नैनी के रेमंड चौराहे पर तकरीबन दो बीघे में 15 कमरों का मकान को किराए पर दिए थे और बची जमीन पर खेती करते थे। स्वभाव से बड़े दयालु एवं जमीनी सोच रखने वाले मकान मालिक, किरायेदार मिश्रा जी की इस तंगी को देखते हुए उनसे किराया माँगना भी बन्द कर दिए थे।

बात सन 2009 की है, मुझे उस मकान में रहते महीनों बीत चले थे, यूनाइटेड इंजीनियरिंग कॉलेज से लगभग दूसरा सेमेस्टर भी मेरा बीतने को था। सन 2008 के प्रारंभिक दिनों से जब से मैं वहाँ रह रहा था, तब से ही उस मकान में रहने वाले बच्चों को निःशुल्क रूप से शाम को एक घंटे पढ़ाना मेरी दिनचर्या बन चुकी थी। जिस भी दिन मैं किसी कारणवश न पढ़ा पाता मुझे स्वयं पर पश्चाताप होता, मुझे ऐसा लगता कि आज मैंने न जाने क्या खो दिया है? धीरे-धीरे समय बीतने के साथ-साथ उन बच्चों में विशेषतौर पर हर्ष से मेरा लगाव अत्यंत प्रगाढ़ होता चला गया, मुझे हर्ष में एक स्वर्णिम भविष्य नजर आने लगा क्योंकि वह हाजिर-जवाब, फुर्त और कुशाग्र बुद्धि का बालक था। मुझे इस बात का पूरा यकीन था कि हर्ष पर मेरी अटूट मेहनत कभी बेकार नहीं जाएगी, एक न एक दिन यह अवश्य मेरा और घर-परिवार का नाम रौशन करेगा।

मेरी उम्र उस बखत कुछ 17 बरस की रही होगी। हर्ष से प्रगाढ़ लगाव के पीछे एक और वजह भी थी, उस वक्त हर्ष जिन परिस्थितियों से होकर गुजर रहा था, कभी वो मेरे बचपन का बीता पल हुआ करता था। वास्तविकता तो यह थी कि हर्ष में मुझे अपना बीता कल साफ-साफ नजर आता था, जिससे मेरी बचपन की स्मृतियाँ ताजी हो उठती थीं। वहाँ पर रहने वाले मुझे और हर्ष को देखकर आश्चर्यचकित रहते थे कि यह कोट, पैंट और टाई वाला इंजीनियरिंग का मॉडर्न स्टूडेंट इस गरीब बच्चे से इतना लगाव क्यूं रखता है?

जीवन के तकरीबन 80 बसंत गुजार चुके और ए. डी. ओ. के पद से सेवानिवृत्त लालता प्रसाद मिश्र जी और उनकी धर्मपत्नी मेरे कमरे के ठीक दूसरी तरफ रहा करते थे। उम्र भले ही उनकी 80 बरस की हो चली थी, परंतु वो आधुनिक चीजों से अपडेट रहने वाले, युवा पीढी को खासा तवज्जो देने वाले, ऊर्जावान एवं बड़े ही मंझे हुए व्यक्ति थे। झुर्रीदार चेहरे पर बिल्कुल धुर सफेद बाल कभी भी उनके बुढापे की शिथिलता को नहीं दर्शाते थे। ऐसा लगता था कि मेरा और उनका जन्मों का संबंध है, मैं उनको नाना जी कहकर पुकारता था। वहाँ पर किसी भी किरायेदार को कभी भी यह अहसास तक भी नहीं हुआ कि वे मेरे सगे नाना जी हैं या नहीं? फिर क्या, इसके पीछे नानी जी का भी बड़ा हाथ था, मेरी किसी भी गलती पर वे मुझे डाटने-डपटने में तनिक भी देरी नहीं किया करती थी। इससे इतर, यह भी विशेष बात थी कि वह तोतली जुबान वाला हर्ष जितना प्रिय मुझे था, उतना ही वह नाना-नानी को भी था। अक्सर प्रत्येक रविवार के दिन मेरे, नाना जी और हर्ष के बीच वाद-संवाद को सुनने मकान के अन्य सारे किरायेदार भी एकत्र हो जाया करते थे, क्योंकि विशेष बात तो यह होती थी कि कहाँ एक 80 बरस के बुढापा, दूसरा 17 बरस का नवयुवक मैं और तीसरा 5 बरस का ढंग से न बोल पाने वाला छोटा हर्ष। उमर में इतने अंतर के होते हुए सामान्य रूप से ऐसा आपसी मेल-जोल लोगों को कम ही देखने को मिलता था।

वर्ष 2009 से 2010 तक पूरे सालभर बेहद लगन से हर्ष को एक बेहतर इंसान बनाने और पढ़ाई में अव्वल रहने के मैंने खूब गुर सिखाए। साल बीतते-बीतते मेरे और हर्ष के लगाव को देखते हुए कोई अंजान व्यक्ति उत्सुकता से यह कह देता था कि तुम दोनों भाई एक साथ रहकर पढ़ाई करते हो क्या? फिर क्या रहता, मैं भी एक सहज मुस्कान के साथ हाँ का इशारा करते हुए सर हिलाना ही उचित समझता था।

एक सुबह घर से फोन आया, सामने से आवाज आई "साहेब (मेरा घर का नाम), तुम्हारे लिए इंडियन नेवी से एक लेटर आया है" वह आवाज मेरी माँ की थी, उनके लहजे में एक प्रभुल्लता थी, आशीर्वाद का भाव था और माँ का प्यार था। उनकी बातों से मुझे ऐसा लग रहा था कि मानों वो मेरे सामने खड़ी होकर मुझे आशीष दे रही हों। थोड़ी देर बात करने के बाद फोन छोटे भाई शुभम के हाथों में पहुँच चुका था, उसने बिल्कुल साफ बताया कि "ये आपके ट्रेनिंग का कॉल लेटर है, जो आया है, एक महीना बाद 29 जुलाई को उड़ीसा में ट्रेनिंग ज्वाइन करना है"। थोड़ी देर बात करके मैंने फोन रखते ही बिना किसी लाग-लपेट के अपने समानों की पैकिंग शुरू कर दी। 2 दिन बाद मैंने वहां से अपने घर के लिए विदा लेने की तैयारी बना ली, खासतौर पर प्यारे हर्ष को ढेर सारी शुभकामनाएं देते हुए भविष्य में हर संभव मदद का भरोसा दिया। हर्ष और उसके पूरे परिवार की आंखें नम थी, अंततः मैंने भी सबका चरण वंदन करके वहां से अंतिम विदा ले ली।

नौसेना ज्वाइन करने के 4-5 साल के व्यस्तता भरे दौर से जैसे ही उबर पाया कि साल 2014 में मैंने उस नैनी के रेमंड तिराहे पर स्थित मिश्रा जी के मकान की सुधि ली। मुझे मिश्रा जी के मकान में बैठे 10 मिनट भी नहीं बीता था कि मकान मालिक मिश्रा जी खेत से आते हुए दूर से ही मुझे देखते ही तपाक से बोल पड़े कि "शिवम! कुछ सुने हो" उनके चेहरे पर एक गहरा असंतोष साफ झलक रहा था। जब तक कि वो मेरे पास आते, मैं दो-तीन कदम नापकर उनके चरण स्पर्श करते हुए कहा "नहीं दादा जी, सुना तो नहीं"। फिर वो कुछ सेकंड तक अवाक थे, निःशब्द थे, रुंधे हुए गले से मुझे सीने से लगाते हुए बोल पड़े कि "अब हर्ष नहीं रहा, इस संसार में, एक सुबह वो इसी छत से नीचे गिर गया, हम सबने बहुत कोशिश की, मगर वो अब साथ नहीं है।" थोड़ी देर तक मैं सन्न रह गया, बस यही सोचता रहा कि आखिर यह क्या हो गया? मुझे अपने पर प्रायश्चित हो रहा था कि काश! मैं कुछ दिन पहले आता, जब मेरा हर्ष जीवित था..। कुछ ही मिनट बीते थे कि मैंने मकान मालिक से विदा लेने की आज्ञा माँगी। वे कमरे से बाहर निकलते हुए मेरे हाथों में कुछ कागज के बने ग्रीटिंग और कटिंग थमाकर बोले, "अपनी अमानत संभालिये शिवम, इतने दिन मैं संभाल रखा था, यह सब तुम्हारे लिए हर्ष ने बनाया था और वह कहता रहता था कि जब मेरे शिवम तातू आयेगें तो उनको दे दूंगा। उसके पिता जी जाते समय मुझे ये सब सौंप गए और बोले कि कभी शिवम आएं तो उनको सौंप देना।" कुछ पल मैं एकटक नजरें गड़ाए उसको देखता रहा, मद्धिम टपकती मेरे आँसुओं की धार से वह सब भीग चुका था। मेरे कदम स्वतः ही घर के बाहर यह सोचते हुए बढ़ चले कि आज हर्ष महज मेरी स्मृतियों में शेष है, काश! आज वह तोतली जुबान वाला हर्ष हमारे पास होता तो बात ही कुछ और होती?

आज जब मैं उसकी स्मृतियों को कलमबद्ध कर रहा हूं तो मेरे लिए आँसुओं को रोक पाना सहज नहीं है। हर्ष के प्रति लगाव व प्यार आज भी मेरे जेहन में वैसा ही है, जैसे उस वक्त था। आज ऐसा लग रहा है कि मानों उसकी तोतली जुबान मुझे बार-बार आवाज दे रही हो। मुझे ऐसा विश्वास है कि आज भी मेरे लिए वह हर्ष मेरा प्रिय है और सदा ही मेरे साथ रहेगा, मेरी स्मृतियों में जीवित रहेगा।


रचनाकार : डॉ. शिवम् तिवारी (कृपालम, नगर पंचायत सतीगंज, अंतू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश)    


COMMENTS

$type=list$au=0$va=0$count=4

$type=grid$count=5$meta=0$snip=0$rm=0

नाम

अज्ञेय,14,अनाथ लड़की,1,अनुपमा का प्रेम,1,अनुभव,1,अनुराधा,1,अनुरोध,1,अपना गान,1,अपनी करनी,1,अभागी का स्वर्ग,1,अमृत,1,अमृता प्रीतम,8,अलग्योझा,1,अविनाश ब्यौहार,4,अशआर,1,अश्वघोष,6,आख़िरी तोहफ़ा,1,आखिरी मंजिल,1,आत्म-संगीत,1,आर्यन मिश्र,2,इज्ज़त का ख़ून,1,उद्धार,1,उपन्यास,48,कफ़न,1,कबीरदास,2,कबीरदास जी के दोहे,3,कर्मों का फल,1,कवच,1,कविता,60,कविता कैसे लिखते है,1,कविता लिखने के नियम,1,कहानी,130,क़ातिल,1,कुंडलिया छंद,6,क्योंकर मुझे भुलाओगे,1,क्रान्ति-पथे,1,ग़ज़ल,105,ग़ज़ल की 32 बहर,3,गजलें,1,ग़रीब की हाय,1,गिरधर कविराय,5,गिरधर की कुंडलिया,4,गिरधर की कुंडलिया छंद,1,गीत,9,गीतिका,1,गुस्ताख हिन्दुस्तानी,7,गोपालदास "नीरज",14,गोपासदास "नीरज",1,गोस्वामी तुलसीदास,1,गोस्वामी तुलसीदास जी,1,गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे,2,घमण्ड का पुतला,1,घर जमाई,1,घासवाली,1,चंदबरदाई,3,छंद,25,छंद के नियम,1,छंद क्या है,1,छंदमुक्त कविता कैसे लिखें,1,जयशंकर प्रसाद,4,जानभी चौधुरी,2,जीतेन्द्र मीना 'गुरदह',2,जॉन एलिया,16,जौन एलिया,1,ज्वालामुखी,1,ठाकुर का कुआँ,1,डॉ. शिवम् तिवारी,1,डॉ.सिराज,1,तुम और मैं,1,तुलसीदास जी के दोहे,1,तोमर छंद,1,तोमर छंद के नियम,1,तोमर छंद कैसे लिखते है,1,त्रिया-चरित्र,1,दण्ड,1,दिल की रानी,1,दिलीप वर्मा'मीर',1,दीपावली का एक दीप,1,दुर्गा का मन्दिर,1,दुष्यंत कुमार,12,दूसरी शादी,1,देवधर की स्मृतियाँ,1,देवी- एक लघु कथा,1,दैनिक साहित्य,4,दो बैलों की कथा,1,दो सखियाँ,1,दोहा,12,दोहा छंद,6,दोहा छन्द,1,दोहा छन्द की परिभाषा,1,दोहा छन्द की पहचान?,1,नज़्म,7,नमक का दारोगा,1,नवगीत,1,नहीं तेरे चरणों में,1,नाग-पूजा,1,निदा फ़ाज़ली,26,निधि छंद के नियम,1,निधि छंद कैसे लिखते है,1,निमन्त्रण,1,निर्मला,21,निर्वासन,1,नैराश्य लीला,1,पंच परमेश्वर,1,पराजय-गान,1,परिणीता,1,पर्वत यात्रा,1,पहले भी मैं इसी राह से जा कर फिर,1,पुस्तक लोकार्पण,2,पूस की रात,1,प्रतापचन्द और कमलाचरण,1,प्रतीक मिश्रा "निरन्तर",1,प्रस्थान,1,प्रातः कुमुदिनी,1,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,15,बड़े घर की बेटी,1,बत्ती और शिखा,1,बन्द दरवाजा,1,बलिदान,1,बशीर बद्र,1,बहर क्या है?,1,बालकों का चोर,1,बाल्य-स्मृति,1,बूढ़ी काकी,1,भग्नदूत,4,मंझली दीदी,1,मंत्र,1,मनोरम छंद,1,मनोरम छंद कैसे लिखते है?मनोरम छंद क्वे नियम,1,मनोरमगा छंद के नियम,1,मनोरमगा छंद कैसे लिखते है?,1,मन्दिर,1,महातीर्थ,1,महादेवी वर्मा,5,मात्रा गणना कैसे करते है,1,मात्रिक अर्द्धसम छन्द,1,मात्रिक छंद के प्रकार,1,मात्रिक छंद क्या है,1,मिर्ज़ा ग़ालिब,1,मिलाप,1,मिस पद्मा,1,मीनू पंत त्रिपाठी,2,मुंशी प्रेमचंद,126,मुक्तक के नियम?,1,मुक्तक कैसे लिखते है?,1,मुक्तक क्या है?,1,मुहम्मद आसिफ अली,1,मैकू,1,मोटर के छींटे,1,यह मेरी मातृभूमि है,1,रसखान,2,रहस्य,1,राज किशोर मिश्र,1,राजहठ,1,राधिका छंद के नियम,1,राधिका छंद कैसे लिखते है,1,राहत इंदौरी,21,लैला,1,वासना की कडियॉँ,1,विजय,1,विलासी,1,विष्णुपद छंद,1,विष्णुपद छंद कैसे लिखते है?,1,वेदी तेरी पर माँ,1,वैधविक,3,शंखनाद,1,शरतचंद्र चट्टोपाध्याय,32,शराब की दुकान,1,शायरी,2,शास्त्र छंद कैसे लिखते है,1,शास्त्र छंद.शास्त्र छंद के नियम,1,श्रीकान्त,20,श्रृंगार छंद के नियम,1,श्रृंगार छंद कैसे लिखते है?,1,संजय चतुर्वेदी,6,संत कबीरदास,1,संस्मरण,1,सच्चाई का उपहार,1,सती,1,सनातन,1,समर यात्रा,1,सम्भाव्य,1,सरिता कुमारी ‘क़लम’,1,सवैया छंद,2,सारी दुनिया के लिए,1,सार्द्धसरस छंद के नियम,1,सार्द्धसरस छंद कैसे लिखते है?,1,साहित्य अकादमी,4,साहित्य ज्ञान,22,साहित्यिक खबरें,5,सुभद्रा कुमारी चौहान,6,सुलक्षण छंद,1,सुलक्षण छंद के नियम,1,सुलक्षण छंद कैसे लिखते है?,1,सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,4,सैलानी बन्दर,1,सोहाग का शव,1,सौत,1,स्वर्ग की देवी,1,हम क्या शीश नवाएँ,1,हम लड़कियां है,1,हरिचरण,1,हस्तीमल "हस्ती",1,हस्तीमल हस्ती के दोहे,1,होली की छुट्टी,1,होशियार सिंह ‘शंबर’,1,होशियार सिंह ‘शंबर’ के दोहे,1,Ghazal Ki Matra Aur Bahar,1,Hindi Me Kavita Kaise Likhe,1,How to Write Hindi Poem,1,Kavita Likhna Seekhe,1,manoram chhand,1,Radhika Chhand Kaise Likhte Hai,1,Vishnupad Chhand Kaise Likhate Hai,1,
ltr
item
दैनिक साहित्य पत्रिका: तोतली जुबान वाला हर्ष.../ डॉ. शिवम् तिवारी
तोतली जुबान वाला हर्ष.../ डॉ. शिवम् तिवारी
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiawW2J1bukqMGiu8x_gXgfea2rJPUiaC1AlVmFu4x5G1pOUPsLcoDY2L-J4bUcwzblPPH5rI9e6T2JnOrITh31hR2XmAusV81L0XOLU_Ji4_YfAziwRvrpY8gEVwrBpEQ5yiVjyFcWuXOC/s1600/1664551232437183-0.png
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiawW2J1bukqMGiu8x_gXgfea2rJPUiaC1AlVmFu4x5G1pOUPsLcoDY2L-J4bUcwzblPPH5rI9e6T2JnOrITh31hR2XmAusV81L0XOLU_Ji4_YfAziwRvrpY8gEVwrBpEQ5yiVjyFcWuXOC/s72-c/1664551232437183-0.png
दैनिक साहित्य पत्रिका
https://www.dainiksahitya.com/2022/09/blog-post_30.html
https://www.dainiksahitya.com/
https://www.dainiksahitya.com/
https://www.dainiksahitya.com/2022/09/blog-post_30.html
true
8531027321664546799
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU Category ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content