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दोहा छन्द की परिभाषा, उदाहरण एवम् भेद ? दोहा छन्द की पहचान?

दोहा छन्द की परिभाषा, उदाहरण एवम् भेद ? दोहा छन्द की पहचान?

दोहा छन्द की पहचान : 


यह एक अर्ध सम मात्रिक छंद है। इस के चार चरण होते है। इस छन्द के पहले तीसरे चरण में १३ मात्राएँ और दूसरे–चौथे चरण में ११ मात्राएँ होती हैं। विषय (पहले तीसरे) चरणों के आरम्भ जगण नहीं होना चाहिये और सम (दूसरे–चौथे) चरणों अन्त में लघु होना चाहिये।

छोटी मात्राये : ि , ु ,

बड़ी मात्रा : ा, ी , ू , ेे, ैै, ो, ौ, ंं, ः .

१ मात्रा को (I) से तथा २ मात्रा को (S) से दर्शाते है।


उदाहरण –

शीश    झुका   मेरा    सदा,   माता   तेरे   द्वार।

मां    वीणा   आशीष   दे,   हो   जाए   उद्धार।।(२४ मात्राएँ)

~ वैधविक



दोहा छन्द के भेद :

48 मात्राओं के दोहा छन्द में विषम मात्राओं वाले चार चरण हैं, इसलिए इसमें 4 लघु होना अनिवार्य है। शेष 44 मात्राएँ बचती है जिनमें अधिकतम 22 गुरु हो सकते हैं। इन गुरु वर्णों की संख्या क्रमशः शून्य तक घटाने से 23 भेद प्राप्त होते हैं। 
इस प्रकार दोहा के इन 23 भेदों में गुरु और लघु वर्णों की संख्या और उनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- 22-4 (भ्रमर), 21-6 ( सुभ्रामर), 20-8 (शरभ), 19-10 (श्येन), 18-12 (मंडूक), 17-14 (मर्कट), 16-16 (करभ), 15-18 (नर), 14-20 (हंस), 13-22 (गवन्द), 12-24 ( पयोधर), 11-26 (चल), 10-28 (वानर), 9-30 (त्रिकल), 8-32 (कच्छप), 7-34 (मच्छ), 6-36 (शार्दूल), 5-38 (अहिवर), 4-40 (ब्याल), 3-42 (विडाल), 2-44 (श्वान), 1-46 (उदर), 0-48 (सर्प) ।,
 इन भेदों का कोई रचनात्मक महत्व नहीं है, यह केवल विद्वानों का बुद्धि-विलास है। बुद्धि-विलास में किये गये इन भेदों में अंतिम दो भेद अशुद्ध या असंभव हैं। इसका कारण यह है कि दोहा के दोनों सम चरणों के अन्त में गाल अनिवार्य है जो ललल नहीं हो सकता है क्योंकि ललल का उच्चारण सदैव लगा होता है, गाल नहीं। 

अस्तु दोहा में कम से कम 2 गुरु अनिवार्य हैं। स्पष्ट है 1 और 0 गुरु वाले भेद क्रमशः उदर और सर्प संभव ही नहीं हैं। इनके जो उदाहरण पूर्ववर्ती विद्वानों द्वारा दिये गये हैं वे सभी अशुद्ध हैं और भविष्य में जो उदाहरण दिये जायेंगे वे सभी अशुद्ध होंगे। कुछ परंपरावादी विषम चरणान्त में आने वाले नयन, शयन जैसे शब्दों का उच्चारण नैन, शैन जैसा कर असंगत परम्परा का पोषण करने का प्रयास करते हैं जो अशुद्ध और नितांत भ्रामक है। यदि 23 भेदों पर ही विचार करें तो रेखांकनीय है कि बुद्धि विलास के लिए इसी प्रकार लगभग सभी मात्रिक छन्दों के भेद किये जा सकते हैं लेकिन रचनाकर्म के लिए उनका कोई महत्व नहीं होगा ।


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नाम

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