कविता,जानभी चौधुरी,हम लड़कियां है,
हम लड़कियां है,
क्या ये हमारी गलती है?
बेड़ियाँ न पहन, हमने उड़ना चाहा,
क्या ये गलती हमारी है।
हम इंसान होते हुए भी, पशु से बेरेहम हत्या, हमारी होती है,
आखिर क्या गलती है हमारी।
क्यों ये संसार हमे चैन से जीने नहीं देता, चैन की सांस लेने नहीं देता,
हमे क्यों ऐसे दर्दनाक और खौफनाक मौत दिया जा रहा है।
मैंने माना, कली तू आके पापों को बढ़ा रहा है ,
मगर श्यामा, कल्कि होके तू क्यों इनका नाश नहीं कर रहा है।
कब तक और देखेगा और सहेगा, भारतमाता भी दर्द से कांप उठी है,
अब तो धर्म युद्ध का शंख बजा, है प्रभु।
धरती के हर कण -कण में खून के छिट्टे बिखरे पड़े हैं,
कब ये सवर टूटेगा और कब प्रतिशोध के आग पर धर्म का बादल बरसेगा।
बहुत हो गया अत्याचार प्रभु,
अब कर दो प्रारम्भ विध्वंस का।
ये भूमि है भारत माँ की और ये संसार है आपका,
कर दो ये पापियों को नस्ट और प्रारंभ करो, सृष्टि धर्म मार्ग का।
ये भूमि है धर्म रक्षक रघुनाथ का, ये भूमि है आदि अनंत देवों के देव महादेव का,
ये भूमि है त्रिसकती, माँ दुर्गा, माँ काली और माँ लक्ष्मी का।
नहीं है लड़कियां कमज़ोर, बना ले अपने ख़ामोशी और चोट को शस्त्र तू,
कोई बांधले कितना भी ज़ंजीर, खोलकर उड़ जा, क्यों की आज़ाद पंछी है तू।
चुनर को लपेट अपने शर्म को बनाले अपना ढाल,
मलाल नहीं मिशाल बन क्यों की अब बहुत दूर तक है तुझे जाना।
मसान में बिछाने वाली शब नहीं,
दूसरों को लौ दिखाने वाली आग की मशाल बन तू।
प्रहार का जवाब विध्वंस से दे,
न डर किसी को, तेरे ईश्वर तेरे साथ है, तेरे सहारे।
सरकार हाथों पे हाथ धरे बैठा हुआ है,
जनता निकालेंगे कैंडल मार्च।
और सरकार के कहने पर,पुलिस प्रशाशन आकर थमा देंगे बात को वही,
मगर रुकना नहीं है, डटे रहना है।
होने दो एक और सत्याग्रह, होने दो एक और महाभारत,
मगर हमे रुकना नहीं, रुकना नहीं है।
गर्व से करो सर ऊपर क्यों की हम निर्दोष है,
हमे झुकना नहीं है, झुकना नहीं है।
ये माटी है ममतामयी भारत माँ की, ये आंचल है तिरंगा का,
यहां बेटियां जीएंगी गौरव से और करेंगी नाश मनुष्य जाती असुरों का।
~ जानभी चौधुरी
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